-
जब हर चीज़ थी फिर भी कुछ न था
-
उस दिन वो आई थी
-
जैसे पहली दफा सवेरा उतरा हो
-
शांत मुस्कुराती हुई
-
पर आज उसकी मुस्कान में मोहब्बत नहीं
Table of Contents
-
जब हर चीज़ थी फिर भी कुछ न था
-
उस दिन वो आई थी
-
जैसे पहली दफा सवेरा उतरा हो
-
शांत मुस्कुराती हुई
-
वो पल जब दिल ने पहली बार खुद को महसूस किया
-
आदतें बदलने लगीं
-
हर कॉल पर उसका नाम देखना अब नहीं होता।
-
हर शेर हर नज़्म हर कैफियत
-
जिसमें उसका जिक्र होता था –
-
अब मिटा दिया गया है।
-
पर अजीब बात है
-
उसका नाम मिटा दिया
-
मगर असर अभी बाकी है।
-
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
-
जिस शहर में वो रहती थी
अब वहां जाना सजा है
हम उस शहर से गुज़रते हैं
जहां वो रहती थी।
हर दीवार से उसकी आवाज़ टकराती है।
हर मोड़ पर उसकी परछाई
बैठी मिलती है।
हम अब रास्ते बदल लेते हैं।
नज़रों से नहीं
आत्मा से कतराते हैं।
क्योंकि उस शहर में एक दास्तान दबी है
जो किसी ने सुनी नहीं
पर हमने जानी है।
और उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
जब सवाल खुद से होने लगे
-
H3: क्या मैं ही गलत था?
-
शुरू में सोचा – शायद हम कम थे।
-
फिर लगा – शायद वो बदल गई थी।
-
फिर समझ आया –
-
कभी-कभी लोग सिर्फ इसलिए आते हैं
-
ताकि टूटने का सबक देकर चले जाएं।
-
हमें रिश्तों से डर नहीं लगता
-
अब यकीन से लगता है।
-
और जब यकीन मर जाए
-
तो मुस्कुराहटें पैदा नहीं होतीं।
-
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
-
H2: अब मुस्कान की परिभाषा बदल चुकी है
-
H3: हँसी सिर्फ तस्वीरों के लिए रह गई
-
अब हँसी भी मजबूरी है –
-
इंटरव्यू के लिए
-
परिवार के लिए
-
दुनिया को दिखाने के लिए।
-
असली मुस्कान तो
-
उसके नाम से जुड़ी थी।
-
जिस दिन वो नाम
-
हमारे वजूद से अलग हुआ
-
हम मुस्कुराने की वजह भी खो बैठे।
-
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
अब जो शायरी है वो मोहब्बत नहीं मोह का मातम है
-
H3: अब कलम खून बहाती है
-
पहले जो कलम प्यार लिखती थी
-
अब वो आंसू लिखती है।
-
हर अल्फाज़ में एक सिसकी छिपी होती है।
-
हर मिसरा एक मातम की तरह उठता है।
-
लोग कहते हैं क्या खूब लिखा है –
-
उन्हें क्या पता
-
ये खूबसूरती नहीं
-
हमारे भीतर मरे हुए हिस्सों की राख है।
-
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
-
H4: नतीजा क्या निकला?
-
H4: बस इतना कि अब हम ख़ुद से दूर हो गए हैं
अब कोई आए या जाए
हमारा दिल कोई फर्क नहीं करता।
अब मोहब्बत भी एक कहानी सी लगती है
जैसे कोई पुरानी फिल्म –
जिसका क्लाइमेक्स अधूरा रह गया हो।
हम जिंदा हैं
पर वो वाला ‘जीना’ अब नहीं रहा।
क्योंकि उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
वो पल — जब इश्क़ ने चाल चल दी।
जिसे छुआ था दिल ने अब साया है।
हमारी ज़िंदगी एक रंगमंच बन गई थी।
जहां हम हर दिन एक नया अभिनय करते थे।
कभी मुस्कुराते थे बिना वजह
कभी आँसू रोकते थे हर सबक के बीच।
वो जो हमारी कहानी की हीरोइन थी
अब एक फ्लैशबैक बन चुकी है।
उसके बिना ये नाटक अधूरा है
पर पर्दा गिर चुका है।
और उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
H3: हर मोड़ पर उसका साया
कभी मंदिर के सामने खड़े होकर दुआ मांगी थी
बस ये साथ बना रहे
अब मंदिर से डर लगता है।
क्योंकि जो मांगा था
वो ही छिन गया।
अब हर मोड़ पर लगता है –
कहीं वो सामने न आ जाए।
कहीं उसकी मुस्कान में फिर से कोई फांस न हो।
हम अब रास्तों से डरते हैं
ना कि मंज़िल से।
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
H2: जब लोग पूछते हैं – तुम ठीक तो हो ना?
H3: झूठ बोलना अब आदत हो गई
हाँ मैं ठीक हूँ
ये जवाब अब दिल से नहीं
मजबूरी से आता है।
क्योंकि सच बताने से लोग सहानुभूति देते हैं
हम अब दया नहीं चाहते।
हम वो वक़्त जी रहे हैं
जहाँ आँसू भी खुद से छुपाने पड़ते हैं।
अब ठीक एक मुखौटा है
जिसे पहन कर हम दिन गुज़ारते हैं।
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
जो खामोशी में जल चुका हो उसकी राख भी नहीं उड़ती।
लोग समझते हैं कि हम ठीक हैं
क्योंकि हम अब भी चलते हैं
काम करते हैं
हँसते भी हैं कभी-कभी।
पर उन्हें क्या पता
कि हर दिन हम एक श्मशान के बीच जीते हैं
जहाँ हमारी मुस्कान दफ्न है।
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
H2: जब वक्त भी थक गया
H3: अब घड़ी की टिक-टिक मायने नहीं रखती
पहले जब वो कॉल करती थी
तो वक्त रुक जाता था।
अब घंटे बीतते हैं
पर दिल नहीं धड़कता।
समय चल रहा है
हम भी चल रहे हैं
पर वो रफ्तार नहीं रही।
हम अब बस…
गिन रहे हैं —
कितने दिन हो गए
उसकी आवाज़ सुने बिना।
और उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
H3: अब खामोशी ही सच्ची साथी है
दोस्ती रिश्ते प्यार –
सब अब बीते मौसम की तरह हैं।
अब तो अकेलापन ही सबसे वफादार है।
वो बातें जो उससे करते थे
अब खुद से करने लगे हैं।
कभी चाय के प्याले से
तो कभी दीवार की दरारों से
अपनी कहानी कहने लगे हैं।
क्योंकि उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
H4: अब मुस्कान की परिभाषा सिर्फ याद है
हम अब भी कभी-कभी मुस्कुराते हैं
जब कोई बचपन की तस्वीर दिख जाए
जब कोई पुराना गाना बज जाए
जब कोई उसका नाम ले अनजाने में..
पर वो मुस्कान नहीं होती –
वो एक पल की कांपती हुई साँस होती है
जो फिर दर्द में बदल जाती है।
अब मुस्कुराना –
एक ख़्वाब जैसा लगता है
जो देखा था..
पर अब टूट चुका है।
उसके बाद हमने मुस्कुराना छोड़ दिया।
Final Punch Line (Poetic Ending)
हमने जो इश्क़ को पूजा समझा
उन्होंने उसे पसंद की तरह बदला।
हम जो एक उम्र बाँध लाए थे आँखों में
वो एक झपकी में भूल गए।
अब इश्क़ नहीं करते
ना किसी नाम से दिल धड़कता है
ना किसी चेहरों में तलाश होती है।

[…] 7: Barbaad Saiyaara की दास्तां तेरे जाने के बाद भी […]
eufhtzzkftteyumxhmxlegserzvivn